Monday, 15 July 2013

अब रंज क्या करना? अब मलाल क्या करना?
तेरी जुर्रत-ए-इंकार पर अब सवाल क्या करना?
एक खुशफ़हमी से तो तेरे सौ सितम अच्छे हैं,
चलो उधर तुम अच्छे रहो, इधर हम अच्छे हैं।

उसकी इकलौती महबूबा कल उसकी बीवी बनी है,
लोग उसे कहते हैं वो किस्मत का बड़ा धनी है।
यहाँ दर्जनों से मिलने के बाद भी तन्हा बैठे हैं,
लोग कहते हैं “तू बच गया, तेरे करम अच्छे हैं।“
चलो उधर तुम अच्छे रहो, इधर हम अच्छे हैं।

आईना-ए-हक़ीक़त मे, बड़ा बदसूरत दिखा हूँ मैं,
भले मे रोड़ा, बुरे वक़्त मे ज़रूरत दिखा हूँ मैं।
मैं कहता हूँ इतना बुरा भी नही हूँ, यकीं कैसे करूँ?
इस झूठी हक़ीक़त से तो मेरे सच्चे भरम अच्छे हैं।

चलो उधर तुम अच्छे रहो, इधर हम अच्छे हैं।