सब वक़्त की दस्तक के मोहताज से होते हैं,
फिर भी क्यूँ खूँ मे, बगावत
के अंदाज़ से होते हैं,
हर हाथ मेरे हाथों
से, क्यूँ छूट ही जाता है?
बुरा इतना भी नहीं, क्यूँ सब नाराज़ से होते हैं?
नींद छोड़ जाती है
मुझे, अब बेगैरत समझकर,
क्यूँ सब ख्वाब
परिंदे की, परवाज़ से होते हैं?
मेरी बिगड़ती तबीयत
का सबब पूछने, वो आएंगे?
हाल जिनके
नाम-ए-मरीज से ही नासाज़ से होते हैं।
रसूख वालों के
तसव्वुर मे बैठा है, जो दिल नहीं रखते?
ये लोग मशहूर तो
तिजोरी की बंद दराज़ से होते हैं।
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