Friday, 26 April 2013


उसकी मासूमियत पे इल्ज़ाम लगाने लगी,
मेरी मुहब्बत पे ऐतराज जताने लगी,
सरहदों पे कितना यकीन करती है दुनिया?
दिल औ धड़कन मे दीवार उठाने लगी।
सूरत-ए-यार को हमने चाँद मे देखा,
दुनिया चाँद मे दाग गिनाने लगी,
ग़म, शिकश्त, नाकामियों के तोहफे मिलेंगे,
अंजाम-ए-उलफत से वाकिफ कराने लगी।
शब भर नही सोता जो मेरी सलामती की दुआ करके,
दुनिया उसका नाम दिवानों मे लिखाने लगी,
बड़े खुलूस से दिये थे जख्म जिसके सीने पे,
आज उसी की कब्र पे फूल चढ़ाने लगी।
गर कुर्बत नहीं होगी, तो क्या मुस्तकबिल होगा?
या खुदा, दुनिया तेरी मौजूदगी भुलाने लगी,
मुहब्बत ही बांधती है, एक धागे से दुनिया को,
दुनिया अपने पीर-ओ-मुर्शाद को आजमाने लगी।

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